۲ آذر ۱۴۰۳ |۲۰ جمادی‌الاول ۱۴۴۶ | Nov 22, 2024
रहबर

हौज़ा / मैं यह ख़त उन जवानों को लिख रहा हूँ जिनकी जीवित अंतरात्मा ने उन्हें ग़ज़ा के मज़लूम बच्चों और औरतों के समर्थन के लिए प्रेरित किया है। संयुक्त राज्य अमरीका के अज़ीज़ स्टूडेंट्स! यह हमारी आपसे सहृदयता और समरसता का पैग़ाम है। इस वक़्त आप इतिहास की सही दिशा में, जो अपना पन्ना पलट रहा है, खड़े हुए हैं।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,हज़रत आयतुल्लाहिल उज़मा सैयद अली ख़ामेनेई ने ग़ाज़ा के सपोर्टर अमरीकी स्टूडेंट्स से एकजुटता के इज़हार के ख़त में लिखा हैं।

इस्लामी इंक़ेलाब के नेता आयतुल्लाहिल उज़मा ख़ामेनेई का ख़त

संयुक्त राज्य अमरीका के जवानों और स्टूडेंट्स के नाम

बिस्मिल्लाह अर्रहमान अर्रहीम

मैं यह ख़त उन जवानों को लिख रहा हूँ जिनकी जीवित अंतरात्मा ने उन्हें ग़ज़ा के मज़लूम बच्चों और औरतों के समर्थन के लिए प्रेरित किया है। संयुक्त राज्य अमरीका के अज़ीज़ स्टूडेंट्स! यह हमारी आपसे सहृदयता और समरसता का पैग़ाम है। इस वक़्त आप इतिहास की सही दिशा में, जो अपना पन्ना पलट रहा है, खड़े हुए हैं।

आज आप रेज़िस्टेंस के मोर्चे का एक भाग बन गए हैं और आपने अपनी सरकार के निर्दयी दबाव के बावजूद, जो खुलकर क़ाबिज़ व बेरहम ज़ायोनिस्ट सरकार का साथ दे रही है, एक शरीफ़ाना जद्दोजहद शुरू की है।

प्रतिरोध का बड़ा मोर्चा आपसे बहुत दूर एक इलाक़े में, आपके आज के इन्हीं जज़्बात और भावनाओं के साथ, बरसों से संघर्ष कर रहा है। इस संघर्ष का लक्ष्य उस खुले ज़ुल्म को रुकवाना है जो ज़ायोनिस्ट नाम के एक आतंकवादी व निर्दयी नेटवर्क ने बरसों पहले फ़िलिस्तीनी क़ौम पर शुरू किया और उसके मुल्क पर क़ब्ज़ा करने के बाद, उसे सबसे कठोर दबाव और यातना का शिकार बना दिया है।

आज अपारथाइड ज़ायोनी सरकार के हाथों हो रहा जातीय सफ़ाया, पिछले दसियों साल से जारी शदीद अत्याचारपूर्ण रवैये के ही क्रम का एक भाग है।

फ़िलिस्तीन एक स्वाधीन सरज़मीन है जो लंबे इतिहास की मालिक एक क़ौम की सरज़मीन है जिसमें मुसलमान, ईसाई और यहूदी शामिल हैं।

ज़ायोनी नेटवर्क के पूंजीपतियों ने विश्व युद्ध के बाद ब्रितानी सरकार की मदद से कई हज़ार आतंकवादियों को धीरे-धीरे इस सरज़मीन पर भेजा, जिन्होंने फ़िलिस्तीन के शहरों और देहातों पर हमले किए, दसियों हज़ार लोगों को क़त्ल कर दिया या उन्हें पड़ोसी मुल्कों की ओर भगा दिया, उनके घरों, बाज़ारों और खेतों को उनसे छीन लिया और क़ब्ज़ा की गयी फ़िलिस्तीन की सरज़मीन पर इस्राईल नाम से एक सरकार बना दी।  

इस क़ाबिज़ सरकार की सबसे बड़ी मददगार, अंग्रेज़ों की शुरुआती मदद के बाद, संयुक्त राज्य अमरीका की सरकार है जिसने इस सरकार की राजनैतिक, आर्थिक और हथियारों की मदद लगातार जारी रखी है, यहाँ तक कि नाक़ाबिले माफ़ी असावधानी बरतते हुए परमाणु हथियारों की तैयारी की राह उसके लिए खोल दी और इस सिलसिले में उसकी मदद की है।

ज़ायोनी सरकार ने पहले ही दिन से निहत्थे फ़िलिस्तीनी अवाम के ख़िलाफ़ निर्दयी रवैया अपनाया और सभी इंसानी व दीनी वैल्यूज़ और दिली एहसास को नज़रअंदाज़ करते हुए उसने दिन ब दिन अपनी बर्बरता, जानलेवा हमलों और दमन की शिद्दत बढ़ा दी।

अमरीकी सरकार और उसके घटकों ने इस स्टेट टेररिज़्म और लगातार ज़ुल्म पर ज़रा सी नाराज़गी तक का इज़हार भी नहीं किया। आज भी ग़ज़ा के भयानक अपराधों के सिलसिले में अमरीकी सरकार के कुछ बयान हक़ीक़त से ज़्यादा दिखावा होते हैं।

रेज़िस्टेंस के मोर्चे ने इस अंधकारमय व निराशा से भरे माहौल में सिर बुलंद किया और उसे ईरान में इस्लामी जम्हूरी सिस्टम के गठन से बढ़ावा और शक्ति मिली।

अंतर्राष्ट्रीय ज़ायोनीवाद के सरग़नाओं ने, जो अमरीका और यूरोप के ज़्यादातर मीडिया के या तो मालिक हैं या ये मीडिया उनके पैसों और रिश्वत के प्रभाव में है, इस मानवीय व वीरता भरे रेज़िस्टेंस को टेररिज़्म का नाम दे दिया। क्या वह क़ौम जो क़ाबिज़ ज़ायोनियों के अपराध के मुक़ाबले अपनी सरज़मीन में अपनी रक्षा कर रही है, आतंकवादी है? क्या इस क़ौम की मानवीय मदद और उसके बाज़ुओं को मज़बूत करना, आतंकवाद की मदद है?

निर्दयी वैश्विक साम्राज्यवाद के सरग़ना, मानवीय मूल्यों तक पर रहम नहीं करते। वह इस्राईल की आतंकवादी व निर्दयी सरकार को, सेल्फ़ डिफ़ेंस करने वाली क़रार देते हैं और फ़िलिस्तीन के रेज़िस्टेंस को जो अपनी आज़ादी और भविष्य के निर्धारण के अधिकार की रक्षा कर रहा है, आतंकवाद कहते हैं।

मैं आपको यह यक़ीन दिलाना चाहता हूँ कि आज स्थिति बदल रही है। एक दूसरा भविष्य, पश्चिम एशिया के संवेदनशील इलाक़े की प्रतीक्षा में है। विश्व स्तर पर बहुत सी अंतरात्माएं जाग गई हैं और सच्चाई सामने आ रही है।

प्रतिरोध का मोर्चा भी ताक़तवर हो गया और ज़्यादा ताक़तवर होगा।

इतिहास भी करवट ले रहा है।

संयुक्त राज्य अमरीका की दसियों यूनिवर्सिटियों के आप स्टूडेंट्स के अलावा दूसरे मुल्कों में भी यूनिवर्सिटियाँ और लोग उठ खड़े हुए हैं। प्रोफ़ेसरों की ओर से आप स्टूडेंट्स का साथ और आप का सपोर्ट एक अहम व प्रभावी वाक़या है। यह चीज़, सरकार के पुलिसिया रवैये और आप पर डाले जाने वाले दबाव में किसी हद तक कमी कर सकती है। मैं भी आप जवानों से एकजुटता का इज़हार करता हूं और आपकी दृढ़ता की क़द्रदानी करता हूँ।

हम मुसलमानों और दुनिया के सभी लोगों को क़ुरआन का पाठ है, सत्य की राह में मज़बूती से डट जाना। "तो (ऐ रसूल) जिस तरह आपको हुक्म दिया गया है, साबित क़दम रहें।" (सूरए हूद, आयत-112) और मानवीय संबंधों के बारे में क़ुरआन का पाठ यह हैः "न किसी पर ज़ुल्म करो और न ही ज़ुल्म सहो।" (सूरए बक़रह, आयत-279)

प्रतिरोध का मोर्चा इन आदेशों और ऐसी ही सैकड़ों शिक्षाओं को सीख कर और उन पर अमल करके आगे बढ़ रहा है और अल्लाह की इजाज़त से विजयी होगा।

मैं सिफ़ारिश करता हूँ कि क़ुरआन को समझिए

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